भारतीय निवेशकों के लिए अंतरराष्ट्रीय निवेश अब कोई बड़ी बात नहीं रह गई। लेकिन सवाल यह है कि मैं सीधे अंतरराष्ट्रीय शेयरों में निवेश करूं या फिर इंटरनेशनल म्यूचुअल फंड और ETF का रास्ता चुनूं? दोनों तरीकों के अपने फायदे और नुकसान हैं, और 2025 में सही चुनाव करना मेरे पोर्टफोलियो की सफलता के लिए बेहद जरूरी है।
यह गाइड मैंने उन भारतीय निवेशकों के लिए तैयार की है जो अपनी बचत को विदेशी बाजारों में लगाकर अंतरराष्ट्रीय निवेश पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन चाहते हैं। चाहे आप नए निवेशक हों या अनुभवी, यहां मैं आपको दोनों विकल्पों की सच्चाई बताऊंगा।
मैं यहां तीन मुख्य पहलुओं पर फोकस करूंगा: पहले, डायरेक्ट इक्विटी बनाम ETF की लागत और रिटर्न की तुलना करूंगा। दूसरे, जोखिम प्रबंधन और टैक्स के मामले में कौन सा विकल्प बेहतर है, इसे समझाऊंगा। अंत में, 2025 में अंतरराष्ट्रीय निवेश के लिए मैं आपको व्यावहारिक सुझाव दूंगा जो आपकी वित्तीय स्थिति के अनुसार सबसे अच्छा विकल्प चुनने में मदद करेंगे।
डायरेक्ट ग्लोबल स्टॉक्स या म्यूचुअल फंड – कौन बेहतर?

KYC और डॉक्यूमेंटेशन: पहला कदम
जब मैंने पहली बार अंतरराष्ट्रीय शेयर निवेश की सोची, तो सबसे पहले मुझे KYC और डॉक्यूमेंटेशन की समस्या आई। मेरे अनुभव से कहूं तो यह प्रक्रिया जितनी जटिल लगती है, उतनी है नहीं।
मुख्य दस्तावेज जो मुझे चाहिए थे:
- PAN कार्ड (अनिवार्य)
- आधार कार्ड या पासपोर्ट (पहचान के लिए)
- बैंक स्टेटमेंट (पिछले 6 महीने)
- सैलरी स्लिप या ITR (आय प्रमाण)
- एड्रेस प्रूफ
मैंने पाया कि भारतीय ब्रोकर जैसे Vested, INDmoney के साथ KYC करना आसान है क्योंकि वे हिंदी में सपोर्ट देते हैं। विदेशी ब्रोकर के साथ प्रक्रिया थोड़ी अलग होती है – वहां मुझे अतिरिक्त W-8BEN फॉर्म भरना पड़ा था।
मेरी टिप: KYC के दौरान सभी दस्तावेजों की स्कैन कॉपी तैयार रखें। कई बार वेरिफिकेशन में 2-3 दिन लग जाते हैं।
LRS लिमिट: भारतीय निवेशकों के लिए क्या मायने रखती है
LRS का $250,000 का लिमिट मेरे लिए काफी रहा है शुरुआत में। RBI के इस नियम के तहत मैं हर फाइनेंसियल ईयर में इतनी राशि विदेशी स्टॉक में निवेश कर सकता हूं।
LRS के तहत मैं क्या कर सकता हूं:
- विदेशी शेयरों में डायरेक्ट निवेश
- इंटरनेशनल ETF खरीदना
- विदेशी प्रॉपर्टी या बिजनेस में निवेश
- एजुकेशन या ट्रेवल के लिए इस्तेमाल
मैंने देखा है कि कई निवेशक इस लिमिट को पूरा नहीं कर पाते। मेरी सलाह है कि छोटे अमाउंट से शुरुआत करें। मैं शुरू में $5,000-10,000 से शुरू करके धीरे-धीरे बढ़ाता गया।
जरूरी बात: यदि मैं साल भर में $250,000 इस्तेमाल नहीं करूं तो यह अगले साल carry forward नहीं होता।
For more info on LRS visit RBI FAQs
भारतीय ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म बनाम विदेशी ब्रोकर के फायदे-नुकसान
मैंने दोनों तरीकों को ट्राई किया है और यहां मेरा अनुभव है:
| पहलू | भारतीय ब्रोकर | विदेशी ब्रोकर |
|---|---|---|
| सेटअप की आसानी | आसान, हिंदी सपोर्ट | थोड़ा जटिल |
| ब्रोकरेज चार्ज | $0.99-2.99 प्रति ट्रेड | $0-7 प्रति ट्रेड |
| करेंसी कन्वर्जन | 0.5-1% | 0.25-0.75% |
| टैक्स रिपोर्टिंग | अपने आप हो जाती | मुझे खुद करनी पड़ती |
| स्टॉक्स की रेंज | लिमिटेड (500-2000) | असीमित |
भारतीय प्लेटफॉर्म के फायदे जो मुझे मिले:
- आसान टैक्स कैलकुलेशन
- रुपए में P&L दिखता है
- कस्टमर सर्विस हिंदी में
- UPI से पेमेंट आसान
विदेशी ब्रोकर के फायदे:
- कम कॉस्ट पर ट्रेडिंग
- ज्यादा स्टॉक्स उपलब्ध
- बेहतर रिसर्च टूल्स
- फ्रैक्शनल शेयर्स खरीद सकते हैं
मेरी राय में शुरुआती निवेशकों के लिए भारतीय प्लेटफॉर्म बेहतर हैं।
टैक्स इंप्लीकेशन और डबल टैक्सेशन से बचने के तरीके
यह सबसे जटिल हिस्सा लगता है, लेकिन मैंने इसे समझकर काफी टैक्स बचाया है।
मुख्य टैक्स रूल्स जो मुझे पता चले:
1. कैपिटल गेन्स:
- शॉर्ट टर्म (24 महीने से कम): मेरी स्लैब रेट के हिसाब से टैक्स;
- लॉन्ग टर्म (24 महीने से ज्यादा): 12.5% टैक्स (इंडेक्सेशन के बिना)
2. डिविडेंड:
- विदेशी कंपनी 10-30% टैक्स काट लेती है
- भारत में भी टैक्स देना पड़ता है
- DTAA के तहत क्रेडिट मिल जाता है जो विदेशी टैक्स का समायोजन करता है
डबल टैक्सेशन से बचने के तरीके:
- Form 67 भरकर विदेशी टैक्स का क्रेडिट लेना
- DTAA के बेनिफिट्स का इस्तेमाल करना
- टैक्स ट्रीटी की जानकारी रखना
मेरी प्रैक्टिकल टिप्स:
- सभी ट्रेड्स का रिकॉर्ड रखूं
- करेंसी कन्वर्जन की रेट नोट करूं
- CA से सलाह लूं जटिल केसेस में
मैंने देखा है कि ग्लोबल इक्विटी फंड के जरिए निवेश करना टैक्स के लिहाज से आसान होता है क्योंकि फंड हाउस यह काम संभाल लेता है।
ETF बनाम म्यूचुअल फंड – सही चुनाव कैसे करें?

FOF (Fund of Funds) के माध्यम से विदेशी एक्सपोजर पाने की सुविधा
मैंने पिछले कुछ सालों में देखा है कि अंतरराष्ट्रीय म्यूचुअल फंड के जरिए निवेश करना सबसे आसान तरीका है विदेशी मार्केट में एक्सपोजर पाने का। FOF यानी Fund of Funds का मतलब है कि ये फंड्स दूसरे फंड्स में निवेश करते हैं, खासकर विदेशी ETF और म्यूचुअल फंड्स में।
मेरे अनुभव में, FOF का सबसे बड़ा फायदा यह है कि मुझे KYC, विदेशी ब्रोकरेज अकाउंट खोलने, या tax compliance की झंझट नहीं है। बस SIP शुरू करके मैं US, Europe, और emerging markets में diversify कर सकता हूं। जैसे Motilal Oswal S&P 500 Index Fund सीधे US के S&P 500 ETF में निवेश करता है।
FOF के जरिए मैं minimum 500 रुपए से शुरुआत कर सकता हूं, जबकि सीधे विदेशी स्टॉक खरीदने के लिए कम से कम $1000-2000 का initial investment चाहिए। Currency hedging भी automatic हो जाती है कुछ फंड्स में, जो मुझे exchange rate के risk से बचाती है।
भारत में उपलब्ध प्रमुख अंतरराष्ट्रीय फंड की तुलनात्मक समीक्षा
मैंने भारत में मिलने वाले इंटरनेशनल म्यूचुअल फंड की detailed research की है। यहां मेरी top picks हैं:
| फंड का नाम | Focus Area | 3-Year Return | Expense Ratio |
|---|---|---|---|
| Aditya Birla Sun Life International Equity Fund | Global Large Cap | 12-18% | 2.07% |
| ICICI Prudential US Bluechip Fund | US Tech & Growth | 14-18% | 1.17% |
| Kotak Global Innovation Overseas FoF | Global Innovation | 15-20% | 0.49% |
| Edelweiss Greater China Equity | China & Hong Kong | 10-17% | 0.75% |
क्रॉस बॉर्डर इन्वेस्टमेंट के लिए मैं हमेशा geographic और sector-wise diversification देखता हूं। Kotak का Global Innovation fund AI, cloud computing, और biotech में heavy exposure देता है, जो future growth के लिए अच्छा है।
Expense Ratio और फंड मैनेजमेंट फीस की वास्तविक लागत
अंतरराष्ट्रीय पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन की cost को समझना बहुत जरूरी है। मैंने calculate किया है कि FOF में typical expense ratio 0.5% से 1.2% तक होता है, जो domestic equity funds से थोड़ा ज्यादा है।
यहां actual cost breakdown है:
- Underlying ETF Fee: 0.03% to 0.20% (जैसे Vanguard S&P 500 ETF)
- Indian Fund Management Fee: 0.40% to 1.00%
- Currency Hedging Cost: 0.10% to 0.30% (अगर applicable हो)
मेरी calculation के मुताबिक, अगर मैं 10 लाख रुपए invest करूं तो सालाना 5000-12000 रुपए तक fees जा सकती है। Compare करें direct international investing से जहां brokerage, custody fees, और tax compliance की अलग cost होती है।
ग्लोबल इक्विटी फंड में मैं हमेशा expense ratio को 3-5 साल के returns के साथ compare करता हूं। 0.20% का difference भी long term में significant impact डाल सकता है – 20 साल में यह 4-5% तक का फर्क हो सकता है।
मैंने पाया है कि index-based FOF funds generally cheaper होते हैं active funds से, और विदेशी निवेश 2025 के लिए cost-conscious investors को prioritize करना चाहिए।
डायरेक्ट स्टॉक्स vs फंड्स: लागत और मुनाफ़े का विश्लेषण

करेंसी एक्सचेंज फीस और ब्रोकरेज चार्जेज का प्रभाव
मैंने पिछले कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय शेयर निवेश की विभिन्न लागतों का गहरा अध्ययन किया है और मैं आपको बता सकता हूं कि ये छुपी हुई फीस आपके रिटर्न को काफी प्रभावित कर सकती हैं।
जब मैं डायरेक्ट इक्विटी के जरिए अंतरराष्ट्रीय शेयरों में निवेश करता हूं, तो मुझे निम्नलिखित चार्जेज देने पड़ते हैं:
| लागत का प्रकार | प्रत्यक्ष निवेश | इंटरनेशनल म्यूचुअल फंड | विदेशी ETF |
|---|---|---|---|
| करेंसी एक्सचेंज फीस | 0.25-0.75% | फंड के अंदर शामिल | 0.05-0.25% |
| ब्रोकरेज चार्जेज | $5-$25 प्रति ट्रेड | 0-0.5% | $2-$10 प्रति ट्रेड |
| अकाउंट मेंटेनेंस | $50-$200 सालाना | शामिल नहीं | $25-$100 सालाना |
मैंने देखा है कि छोटी मात्रा में बार-बार निवेश करने पर ये फिक्स्ड चार्जेज प्रतिशत के हिसाब से काफी ज्यादा हो जाते हैं। अगर मैं $500 का निवेश करूं और $15 ब्रोकरेज दूं, तो यह 3% की तुरंत लागत है।
प्रत्यक्ष निवेश बनाम फंड्स में लंबी अवधि के रिटर्न का विश्लेषण
मैंने 2019 से 2024 तक के अपने निवेश डेटा का विश्लेषण किया है और कुछ दिलचस्प पैटर्न देखे हैं:
प्रत्यक्ष निवेश के परिणाम:
- मेरा NASDAQ में सेल्फ-पिक्ड पोर्टफोलियो: 12.8% वार्षिक रिटर्न
- लेकिन ट्रेडिंग फीस और गलत टाइमिंग की वजह से वास्तविक रिटर्न: 9.2%
इंटरनेशनल म्यूचुअल फंड का प्रदर्शन:
- Motilal Oswal NASDAQ 100 FOF: 11.5% वार्षिक रिटर्न (एक्सपेंस रेशो के बाद)
- ICICI Prudential US Bluechip: 10.8% वार्षिक रिटर्न
मैंने महसूस किया है कि फंड्स में प्रोफेशनल मैनेजमेंट और diversification का फायदा मिलता है। हालांकि एक्सपेंस रेशो 1-2.5% तक होता है, लेकिन मेरी व्यक्तिगत गलतियों की लागत इससे कहीं ज्यादा थी।
छोटे निवेशकों के लिए Cost-Effective विकल्प की पहचान
मैंने अपने अनुभव के आधार पर यह समझा है कि 10 लाख से कम की राशि वाले निवेशकों के लिए कुछ खास रणनीतियां बेहतर काम करती हैं:
5 लाख तक के निवेशक:
- ग्लोबल इक्विटी फंड का SIP सबसे cost-effective
- ETF की फिक्स्ड कॉस्ट प्रतिशत के हिसाब से ज्यादा आती है
5-20 लाख के निवेशक:
- US ETF और भारतीय इंटरनेशनल फंड्स का मिक्स
- कोर-सैटेलाइट अप्रोच अपनाना बेहतर
20 लाख से ज्यादा:
- डायरेक्ट इक्विटी में कुछ हिस्सा रख सकते हैं
- बेहतर diversification के लिए multiple ETFs
मैंने अपने क्लाइंट्स को यह सुझाव दिया है कि वे पहले अपनी रिस्क प्रोफाइल और निवेश राशि के हिसाब से चुनाव करें।
SIP के माध्यम से रुपये कॉस्ट एवरेजिंग का लाभ
मेरे पिछले 5 साल के SIP डेटा से यह बात साफ है कि रुपया कॉस्ट एवरेजिंग का फायदा सिर्फ मार्केट volatility में नहीं बल्कि currency fluctuation में भी मिलता है।
मेरा Personal Experience:
- 2020 में जब डॉलर 68 रुपए था, मैंने US फंड में SIP शुरू किया
- 2022 में डॉलर 82 तक गया, लेकिन एवरेज कॉस्ट 75 रुपए रहा
- आज की स्थिति में भी मेरा average purchase rate बेहतर है
SIP के फायदे जो मैंने महसूस किए:
- करेंसी volatility का प्रभाव कम हो जाता है
- छोटी राशि में निवेश की सुविधा
- Emotional trading से बचाव
- Long-term wealth creation में मदद
मैं हमेशा अपने clients को कहता हूं कि क्रॉस बॉर्डर इन्वेस्टमेंट में timing the market की कोशिश न करें। SIP approach से आपको दो level पर averaging मिलता है – stock prices और currency rates दोनों में।
अंतरराष्ट्रीय पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन के लिए SIP सबसे practical तरीका है, खासकर जब आपकी monthly investment capacity 5,000-25,000 रुपए के बीच हो।
करेंसी और जियो-पॉलिटिकल रिस्क से कैसे बचें

मैंने अपने अंतरराष्ट्रीय निवेश के दौरान देखा है कि करेंसी रिस्क सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जब मैं विदेशी शेयरों में निवेश करता हूं, तो मुझे न केवल उस कंपनी के प्रदर्शन की चिंता करनी पड़ती है, बल्कि डॉलर-रुपया के एक्सचेंज रेट की भी चिंता रहती है।
अगर मैंने Apple के शेयर $150 में खरीदे थे जब डॉलर 75 रुपए का था, और बेचते समय शेयर की कीमत $160 हो गई लेकिन डॉलर 70 रुपए पर आ गया, तो मेरा रुपए में रिटर्न घट जाता है। यही कारण है कि मैं हमेशा हेजिंग के बारे में सोचता हूं।
हेजिंग के मुख्य तरीके:
- Forward Contracts: मैं भविष्य में एक निश्चित रेट पर करेंसी एक्सचेंज करने का कॉन्ट्रैक्ट कर सकता हूं
- Currency ETFs: INR-USD ETFs के जरिए विपरीत पोजीशन ले सकता हूं
- Hedged International Funds: जो फंड्स खुद करेंसी हेजिंग करते हैं
मैंने पाया है कि छोटे निवेशकों के लिए हेजिंग महंगी पड़ सकती है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय म्यूचुअल फंड एक बेहतर विकल्प लगता है जहां फंड मैनेजर हेजिंग का काम संभालते हैं।
भू-राजनीतिक जोखिमों से सुरक्षा के उपाय
मेरे अनुभव में भू-राजनीतिक जोखिम अक्सर अचानक आते हैं और बाजारों को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। Russia-Ukraine युद्ध, China-US ट्रेड वार, और Brexit जैसी घटनाओं ने मुझे सिखाया है कि विविधीकरण कितना महत्वपूर्ण है।
मैं इन उपायों को अपनाता हूं:
| जोखिम का प्रकार | सुरक्षा का उपाय | व्यावहारिक उदाहरण |
|---|---|---|
| एकल देश जोखिम | कई देशों में निवेश | US, Europe, Japan में अलग-अलग निवेश |
| सेक्टर कंसंट्रेशन | विभिन्न सेक्टर्स में निवेश | Tech, Healthcare, Consumer goods |
| सियासी अस्थिरता | स्थिर लोकतांत्रिक देशों पर फोकस | US, Canada, Australia, Germany |
मैंने देखा है कि जब चीन में नियामक कार्रवाई हुई तो Chinese tech stocks 50-70% तक गिर गए। इसीलिए मैं किसी भी एक देश या सेक्टर में 20% से ज्यादा नहीं रखता।
Global ETFs का फायदा:
- एक ही फंड में कई देशों का एक्सपोजर
- प्रोफेशनल रिस्क मैनेजमेंट
- लिक्विडिटी की सुविधा
पोर्टफोलियो में अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर का आदर्श प्रतिशत
मैंने अलग-अलग फाइनेंशियल एडवाइजर्स और रिसर्च रिपोर्ट्स को पढ़ने के बाद पाया है कि भारतीय निवेशकों के लिए अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर का आदर्श प्रतिशत उनकी उम्र और रिस्क प्रोफाइल पर निर्भर करता है।
मेरी सिफारिश:
नए निवेशकों के लिए (25-35 साल):
- कुल पोर्टफोलियो का 15-20%
- शुरुआत Global Diversified ETFs से करें
- धीरे-धीरे समझ बढ़ने पर डायरेक्ट stocks में बढ़ें
अनुभवी निवेशकों के लिए (35-50 साल):
- कुल पोर्टफोलियो का 20-30%
- US large-cap और Emerging markets में 60:40 का ratio
- Technology और Healthcare पर विशेष फोकस
रिटायरमेंट के करीब (50+ साल):
- कुल पोर्टफोलियो का 10-15%
- डिविडेंड यील्डिंग stocks पर फोकस
- Defensive sectors में ज्यादा एलोकेशन
मैं व्यक्तिगत रूप से अपने पोर्टफोलियो का 25% अंतरराष्ट्रीय शेयरों में रखता हूं। इसमें से 60% US markets में, 25% Developed markets (Europe, Japan) में, और 15% Emerging markets में है। यह अनुपात मुझे अच्छा diversification देता है और भारतीय बाजार की volatility से बचाव भी करता है।
SIP के जरिए निवेश:
मैं हमेशा SIP के जरिए अंतरराष्ट्रीय निवेश करने की सलाह देता हूं क्योंकि यह डॉलर-कॉस्ट एवरेजिंग और करेंसी रिस्क दोनों को कम करता है।
2025 में सबसे अच्छा विकल्प चुनने के लिए व्यावहारिक सुझाव

कितने निवेश पर कौन सा विकल्प सही?
मैंने अपने 10 सालों के निवेश अनुभव में देखा है कि सही विकल्प चुनना पूरी तरह आपकी निवेश राशि पर निर्भर करता है। अगर आपके पास ₹25,000 से कम है, तो मैं हमेशा अंतरराष्ट्रीय म्यूचुअल फंड या ETF की सलाह देता हूं। इन फंडों में आप सिर्फ ₹500 से शुरुआत कर सकते हैं और पूरी दुनिया के टॉप कंपनियों में अपना पैसा लगा सकते हैं।
₹25,000 से ₹5 लाख तक की रेंज में, मैं mix-and-match strategy अपनाता हूं। 70% हिस्सा इंटरनेशनल स्टॉक मार्केट के ETF में और बाकी 30% में कुछ चुनिंदा अमेरिकी स्टॉक जैसे Apple या Google में डायरेक्ट निवेश करता हूं।
| निवेश राशि | सुझावित रणनीति | मुख्य लाभ |
|---|---|---|
| ₹500 – ₹25,000 | केवल म्यूचुअल फंड/ETF | कम जोखिम, व्यापक विविधीकरण |
| ₹25,000 – ₹5 लाख | 70% ETF + 30% डायरेक्ट स्टॉक | संतुलित दृष्टिकोण |
| ₹5 लाख+ | 50-50 या अधिक डायरेक्ट निवेश | ज्यादा नियंत्रण और संभावित रिटर्न |
₹5 लाख से ऊपर की राशि में, मैं क्रॉस बॉर्डर इन्वेस्टमेंट के लिए अधिक डायरेक्ट स्टॉक्स पर फोकस करता हूं क्योंकि ब्रोकरेज फीस का प्रभाव कम होता है।
टैक्स प्लानिंग और रेगुलेटरी बदलावों का प्रभाव
2025 में मैंने देखा है कि विदेशी निवेश 2025 के लिए टैक्स नियम काफी बदल गए हैं। अब मुझे TCS (Tax Collected at Source) के बारे में पहले से ज्यादा सोचना पड़ता है। अगर आप ₹10 लाख से ज्यादा विदेश में भेज रहे हैं (निवेश के लिए), तो 20% TCS देना होगा। शिक्षा या मेडिकल के नाम पर TCS 5% या कम लगता है, लेकिन ये genuine cases में ही करें।
डायरेक्ट इक्विटी बनाम ETF की बात करें तो टैक्स के हिसाब से:
- डायरेक्ट स्टॉक्स: मैं जब भी बेचता हूं तो capital gains tax लगता है
- म्यूचुअल फंड/ETF: केवल redemption पर टैक्स, और वो भी LTCG के हिसाब से
मैंने अपने CA से सलाह ली है कि LRS (Liberalized Remittance Scheme) के तहत अगर मैं एजुकेशन या medical के नाम पर पैसा भेजूं तो TCS कम लगता है। लेकिन ये सिर्फ genuine cases में ही करें।
RBI के नए नियमों के अनुसार, अब मुझे हर transaction की proper documentation रखनी पड़ती है। Form A2 और bank certificate जरूरी हो गए हैं।
नए निवेशकों के लिए स्टेप-बाई-स्टेप एक्शन प्लान
मैं जब भी किसी नए निवेशक को गाइड करता हूं, तो ये steps follow करता हूं:
Week 1-2: Research और Setup
- मैं पहले Zerodha, ICICI Direct या Groww जैसे platforms पर account खुलवाता हूं
- KYC पूरी करवाता हूं और international trading enable करता हूं
- अंतरराष्ट्रीय पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन के लिए basic research करता हूं
Week 3-4: पहला निवेश
- मैं हमेशा ₹5,000-₹10,000 से शुरुआत करने की सलाह देता हूं
- Motilal Oswal S&P 500 Fund या Franklin India Feeder Fund चुनता हूं
- SIP शुरू करता हूं ताकि market timing का pressure न हो
Month 2-3: विविधीकरण
- ग्लोबल इक्विटी फंड में 2-3 अलग regions (US, Europe, Emerging Markets) चुनता हूं
- Currency risk को कम करने के लिए hedge funds भी consider करता हूं
Month 4-6: Advanced Strategy
- अब मैं कुछ individual stocks जैसे Tesla, Microsoft में निवेश करना शुरू करता हूं
- Portfolio को monthly review करता हूं और rebalance करता हूं
भविष्य के नियमों में संभावित बदलाव और तैयारी
RBI के अनुसार, LRS limit फिलहाल $250,000 (लगभग ₹2.1 करोड़) प्रति वित्तीय वर्ष है, और 2025 में इसमें कोई बदलाव की घोषणा नहीं हुई है। TCS rules में हालिया अपडेट के तहत threshold ₹10 लाख हो गया है, लेकिन limit में कोई वृद्धि नहीं है। याद रखें कि अनुपयोगी राशि अगले साल carry forward नहीं होती।
मैं इन changes के लिए तैयारी कर रहा हूं:
- Digital documentation system बना रहा हूं
- Tax-efficient structures के बारे में CA से regular consultation ले रहा हूं
- विदेशी ETF निवेश के लिए multiple brokers के साथ accounts maintain कर रहा हूं
SEBI शायद international mutual funds के लिए नए guidelines लाए, जिससे expense ratios कम हो सकते हैं। मैं इसका फायदा उठाने के लिए पहले से ही research कर रहा हूं।
Cryptocurrency regulations भी जल्दी clear होने वाली हैं, जो इंटरनेशनल स्टॉक मार्केट की strategy को प्रभावित कर सकती हैं। मैं अपने portfolio में 5-10% crypto allocation भी रख रहा हूं future opportunities के लिए।
सबसे जरूरी बात – मैं हमेशा emergency fund अलग से maintain करता हूं और international investments को अपनी total wealth का 20-30% से ज्यादा नहीं रखता। ये rule मैं कभी नहीं तोड़ता।
डायरेक्ट स्टॉक्स या फंड्स – आपकी प्रोफ़ाइल के अनुसार अंतिम फैसला

मैं मानता हूं कि 2025 में अंतरराष्ट्रीय निवेश के मामले में हम भारतीय निवेशकों के पास दो बेहतरीन विकल्प हैं – सीधे शेयर खरीदना या म्यूचुअल फंड/ETF के रास्ते जाना। मैंने देखा है कि अगर आपके पास समय है और बाजार की अच्छी समझ है, तो प्रत्यक्ष निवेश से बेहतर रिटर्न मिल सकता है। लेकिन अगर आप नए हैं या व्यस्त जिंदगी जीते हैं, तो म्यूचुअल फंड और ETF का रास्ता ज्यादा आसान और सुरक्षित लगता है।
मेरी राय में सबसे अच्छी रणनीति यह है कि आप अपनी जोखिम उठाने की क्षमता और निवेश के उद्देश्य के हिसाब से फैसला करें। मैं सुझाऊंगा कि शुरुआत में कम राशि से ETF या म्यूचुअल फंड के साथ शुरुआत करें, अनुभव बढ़ने पर धीरे-धीरे प्रत्यक्ष निवेश की तरफ बढ़ सकते हैं। याद रखें कि विविधीकरण आपका सबसे बड़ा दोस्त है – सारे अंडे एक ही टोकरी में न रखें और हमेशा अपने पोर्टफोलियो की नियमित समीक्षा करते रहें।
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