Gold-to-Silver Ratio क्या है और क्यों है यह खास?
सोने-चांदी का अनुपात, जिसका गणना सोने की कीमत को चांदी की कीमत से विभाजित करके की जाती है, एक महत्वपूर्ण वित्तीय संकेतक है, जिसका उपयोग निवेशक सोने और चांदी के बीच के संबंध को समझने के लिए करते हैं। यह अनुपात यह बताता है कि एक औंस सोने की कीमत कितनी औंस चांदी के बराबर है। उदाहरण के लिए, यदि सोने की कीमत 3530 डॉलर प्रति औंस और चांदी की कीमत 41 डॉलर प्रति औंस है, तो सोने-चांदी का अनुपात 86 होगा।
यह अनुपात न केवल अर्थव्यवस्था के आर्थिक स्वास्थ्य को दर्शाता है, बल्कि विभिन्न वित्तीय रणनीतियों का मार्गदर्शन करने में भी सहायक होता है। जब यह अनुपात बढ़ता है, तो यह संकेत करता है कि सोना चांदी की तुलना में अधिक महंगा हो रहा है, जो निवेशकों को सोने में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। इसके विपरीत, जब अनुपात घटता है, तो यह सोने की तुलना में चांदी की बढ़ती मांग को दर्शाता है, जिससे निवेशक चांदी में निवेश की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
निवेशकों के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि सोने-चांदी का अनुपात विभिन्न प्रकार के आर्थिक और भू-राजनीतिक कारकों से प्रभावित हो सकता है। यह कृषि उत्पादन, कीमतों में उतार-चढ़ाव, और वैश्विक बाजारों में चलन जैसी कई बातों से प्रभावित होता है। इस अनुपात का नियमित रूप से विश्लेषण करने से निवेशकों को बाजार की प्रवृत्तियों और दोनों धातुओं के संभावित मूल्य परिवर्तन को पहचानने में सहायता मिलती है। ऐसे में, सोने-चांदी का अनुपात एक अनदेखा निवेश संकेत है, जो महत्वपूर्ण वित्तीय रणनीतियों के विकास में सहायक हो सकता है।
सोने-चांदी अनुपात का इतिहास: प्राचीन काल से आज तक

सोने और चांदी का अनुपात, जिसे ‘गोल्ड-टू-सिल्वर रेशियो’ के नाम से भी जाना जाता है, का इतिहास व्यापार और अर्थशास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन समय से, ये दोनों धातुएं मूल्य के रूप में उपयोग में लाई जाती रही हैं और उनका अनुपात विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं और आर्थिक प्रवृत्तियों द्वारा प्रभावित हुआ है। उदाहरण के लिए, प्राचीन रोम में, सोने और चांदी का अनुपात लगभग 12:1 था। यह समय के साथ बदलता रहा, जैसे कि मध्यकालीन युग में जब यूरोपीय देशों में स्वर्ण मुद्रा को प्राथमिकता दी गई। इस अवधि में अनुपात काफी अधिक बढ़ गया था, और यह कभी-कभी 15:1 तक पहुँच गया।
19वीं शताब्दी की शुरुआत में, औद्योगिक क्रांति ने चांदी की मांग को उठाया, जिसके परिणामस्वरूप सोने-चांदी का अनुपात घटकर 16:1 हो गया। हालांकि, उस समय की प्रगति और आर्थिक स्थिरता ने इन्हें मूल्यवान बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अमेरिका में चांदी की खदानें खुलने से और सोने की स्थिरता के कारण, 20वीं शताब्दी की शुरुआत में यह अनुपात 20:1 तक पहुंच गया।
बाद के वर्षों में, विशेष रूप से 1970 के दशक में, जब डॉलर का सोने से जुड़ाव समाप्त हो गया, तब चांदी और सोने का अनुपात होलistically अनिश्चितताओं पर आधारित हो गया। अब, जब हम आधुनिक वित्तीय बाजारों को देखते हैं, तो अनुपात लगातार बदलता रहता है, जो निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण संकेत प्राप्त करने का एक आधार प्रदान करता है। इस ऐतिहासिक अनुसंधान से निवेशकों को यह समझने में मदद मिलती है कि कैसे विभिन्न कारक, जैसे कि आर्थिक संकट, मुद्रास्फीति, और वैश्विक मांग, सोने-चांदी के अनुपात पर प्रभाव डालते हैं।
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निवेशकों के लिए जरूरी संकेत: अनुपात कैसे करें मदद
सोने-चांदी का अनुपात एक महत्वपूर्ण वित्तीय संकेतक है, जिसका अनुसरण निवेशकों द्वारा किया जाता है। यह अनुपात सोने और चांदी की कीमतों के बीच के संबंध को दर्शाता है, और इसके उतार-चढ़ाव से निवेशकों को विभिन्न महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए। पहले, यह ध्यान देने योग्य है कि जब सोने का मूल्य चांदी की तुलना में बढ़ता है, तो यह मजबूती का संकेत हो सकता है। निवेशकों को ऐसे समय पर सोने की वस्तुओं को अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए।
बाजार में बदलाव लाने वाले प्रमुख कारक
सोने-चांदी के अनुपात के उतार-चढ़ाव को समझने के लिए कई कारकों का विश्लेषण आवश्यक है। सबसे पहले, वैश्विक आर्थिक स्थिति पर विचार करना चाहिए। जब वैश्विक आर्थिक स्थिति कमजोर होती है, तो निवेशक सुरक्षित संपत्तियों की तलाश करते हैं, जिससे सोने की मांग बढ़ती है। दूसरी ओर, जब आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, तो चांदी की मांग भी बढ़ सकती है, विशेषकर औद्योगिक उपयोग के कारण।
चार्ट के जरिए अनुपात को समझने का आसान तरीका
चार्ट और ग्राफ़ का उपयोग करके, निवेशक इस अनुपात के कार्यप्रवाह को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि अनुपात 60 के स्तर तक पहुँचता है और फिर नीचे आता है, तो यह चांदी की कीमतों में संभावित वृद्धि का संकेत हो सकता है। इसके विपरीत, यदि अनुपात 70 तक पहुँचता है, तो यह सोने में निवेश करने का एक अच्छा समय हो सकता है।
निवेश से पहले जरूरी सावधानियां और जोखिम प्रबंधन
हालांकि यह अनुपात बहुत उपयोगी है, लेकिन निवेशकों को सावधान रहना चाहिए। इसमें ट्वीस्टिंग के अलावा, अन्य वस्तुओं के बाजार में भी देखना महत्वपूर्ण है। कोई भी निर्णय लेने से पहले, विभिन्न संकेतकों और बाजार के हालात को ध्यान में रखना चाहिए। इसके अलावा, व्यक्तिगत निवेश स्वीकार्यता और जोखिम सहिष्णुता के अनुसार अपने निर्णय लेना चाहिए।
सोना या चांदी: किस धातु में ज्यादा मौका छुपा है?

सोना और चांदी दोनों ही निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण संपत्तियाँ हैं, लेकिन जब निवेश की बात आती है, तो यह महत्वपूर्ण है कि आप जानें कि इनमें से कौन सा धातु वर्तमान में अधिक संभावनाओं वाला है। इसके लिए, बाजार की स्थितियों की निगरानी करना आवश्यक है, और कुछ महत्वपूर्ण संकेतकों का उपयोग करना आवश्यक है, जो आपको समझने में मदद कर सकते हैं कि कौन सा धातु कम मूल्यवान है।
सबसे पहले, आपको सोने-चांदी के अनुपात पर ध्यान देना चाहिए। यह अनुपात दर्शाता है कि सोने की कीमत चांदी की कीमत के मुकाबले कैसे परिवर्तनशील हो रही है। यदि यह अनुपात बढ़ता है, तो यह संकेत हो सकता है कि चांदी का मूल्यांकन अपेक्षाकृत कम हो रहा है, और सोना उच्च मूल्य पर पहुंच रहा है। दूसरी ओर, यदि अनुपात घटता है, तो चांदी के लिए एक संभावित मौका हो सकता है।
एक और संकेतक जो उपयोगी होता है, वह है बाजार की मांग और आपूर्ति का विश्लेषण। यदि किसी धातु की मांग में वृद्धि होती है जबकि आपूर्ति स्थिर बनी रहती है, तो उसकी कीमतों में वृद्धि होने की अधिक संभावना होती है। इसके विपरीत, अगर आपूर्ति अधिक है और मांग कम है, तो कीमतों में गिरावट का खतरा होता है। इसके अलावा, व्यवसायिक चक्र, आर्थिक मंदी या वृद्धि के दौरान सोने और चांदी की भूमिका भी प्रभाव डालती है।
अंततः, निवेश के लिए सही विकल्प चुनने के लिए आपको सोने और चांदी के मूल्य संकेतों का गहन विश्लेषण करना होगा। उचित डेटा के साथ निर्णय लेने से आपको लंबे समय में बेहतर लाभ कमाने में सफलता मिल सकती है।
Gold-to-Silver Ratio: निवेश का शक्तिशाली संकेतक

सोने-चांदी का अनुपात एक महत्वपूर्ण तकनीकी संकेतक है, जो निवेशकों को धातुओं के मार्केट ट्रेंड और संभावनाओं का पूर्वानुमान लगाने में मदद करता है। इस अनुपात को सोने के मूल्य को चांदी के मूल्य से विभाजित करके प्राप्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि सोने की कीमत 10,575 रुपये प्रति ग्राम है और चांदी की कीमत 130 रुपये प्रति ग्राम है (या 1,30,000 रुपये प्रति किलो), तो सोने-चांदी का अनुपात 81 होगा। इस संकेतक का मुख्य उद्देश्य सोने और चांदी के मूल्य के बीच संबंध को समझना है, जिससे निवेशक सही समय पर फैसले ले सकें।
जब सोने-चांदी का अनुपात बढ़ता है, तो यह संकेत करता है कि सोने की कीमत चांदी की तुलना में तेजी से बढ़ रही है, जो यह दर्शाता है कि निवेशक सुरक्षित परिसंपत्तियों की ओर बढ़ रहे हैं। इसके विपरीत, जब यह अनुपात घटता है, तो यह चांदी की कीमत में वृद्धि और सोने की कीमत में कमी का संकेत हो सकता है, जो निवेशकों के लिए एक संभावित खरीदारी का अवसर प्रस्तुत करता है। इस प्रकार, सोने-चांदी का अनुपात बाजार में धातुओं के प्रति धारणा का एक मजबूत संकेतक है।
बाजार के विभिन्न चरणों में, यह संकेतक ना केवल मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों को उजागर करता है, बल्कि अगले सालों में कीमतों की दिशाओं की भविष्यवाणी भी करता है। इस आधार पर, निवेशक अपने पोर्टफोलियो को सफलतापूर्वक संतुलित कर सकते हैं। इसलिए, सोने-चांदी का अनुपात उन लोगों के लिए एक अनदेखा निवेश संकेत बन गया है, जो दीर्घकालिक दृष्टिकोण से निवेश करना चाह रहे हैं।
Arbitrage: सोने-चांदी के अनुपात से स्मार्ट मुनाफा
वित्तीय दुनिया में Arbitrage (आर्बिट्राज) एक ऐसी रणनीति है, जिसमें निवेशक एक ही संपत्ति को अलग-अलग बाज़ारों में अलग-अलग कीमतों पर खरीद और बिक्री करके लाभ कमाते हैं। यह अवधारणा सोने और चांदी जैसे कीमती धातुओं में विशेष रूप से प्रभावी होती है क्योंकि इन धातुओं की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू बाजारों में हमेशा समान नहीं रहतीं। जब Gold-to-Silver Ratio सामान्य स्तरों से काफी ऊपर या नीचे चला जाता है, तब यह निवेशकों के लिए एक स्पष्ट संकेत बन जाता है कि बाज़ार में असंतुलन है और इसे सही तरीके से उपयोग करके मुनाफा कमाया जा सकता है।
अगस्त 2025 की स्थिति को देखें तो यह अनुपात 92 के आसपास बना हुआ है, जो पिछले पांच वर्षों के औसत 85 से अधिक है। यह दर्शाता है कि इस समय चांदी अपेक्षाकृत सस्ती है जबकि सोना महंगा हो चुका है। ऐसी स्थिति में समझदार निवेशक इस असंतुलन का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं।
उदाहरण के तौर पर, जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चांदी की कीमत भारत की तुलना में काफी कम होती है और घरेलू मांग बढ़ी हुई रहती है, तो चांदी को बाहर से खरीदकर भारत में बेचना लाभकारी हो सकता है। ठीक इसी तरह, जब भारत में सोने का भाव वैश्विक कीमतों की तुलना में ज्यादा होता है, तब सोना विदेश में खरीदकर भारत में बेचना एक आकर्षक सौदा बन सकता है, बशर्ते यह सब सरकारी नियमों और कर प्रावधानों के अनुरूप किया जाए।
भारत में सोने और चांदी की कीमतें कई कारकों पर निर्भर करती हैं, जैसे वैश्विक बाजार की चाल, रुपये और डॉलर का विनिमय दर, आयात शुल्क, और स्थानीय मांग। शादी के सीजन और त्योहारी समय में भारत में सोने-चांदी की खपत अचानक बढ़ जाती है, जिससे कीमतों में असमानता और भी स्पष्ट हो सकती है। इस स्थिति में आर्बिट्राज निवेशकों के लिए एक अवसर बन जाता है, क्योंकि सही समय पर खरीद-बिक्री करके वे बिना बड़े जोखिम के बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं।
हालांकि, यह रणनीति उतनी सरल नहीं जितनी दिखती है। इसमें सफलता पाने के लिए निरंतर बाजार डेटा पर नजर रखना, वैश्विक और घरेलू नीतियों की समझ होना, और कर एवं नियमों का सही पालन करना बेहद जरूरी है। कई बार कीमतों का यह अंतर बहुत कम समय के लिए ही मौजूद रहता है, इसलिए निवेशकों को तेजी से निर्णय लेने की क्षमता विकसित करनी होती है।
अंततः, Gold-to-Silver Ratio न केवल निवेशकों को यह बताता है कि किस धातु में वर्तमान में अधिक संभावना है, बल्कि यह उन्हें आर्बिट्राज जैसी उन्नत रणनीतियों का उपयोग करने के लिए भी प्रेरित करता है। सही समय पर कदम उठाकर और अनुशासन बनाए रखते हुए, इस असंतुलन को दीर्घकालिक लाभ में बदला जा सकता है।
2025 में अधिकतम रिटर्न के लिए स्मार्ट निवेश रणनीतियां

सोने और चांदी का अनुपात निवेश के लिए एक महत्वपूर्ण संकेतक है, विशेषकर तब जब हम भविष्य के लिए संभावित रिटर्न की योजना बनाते हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, 2025 में अधिकतम रिटर्न प्राप्त करने के लिए कुछ व्यावहारिक रणनीतियों का ज्ञान रखना जरूरी है। सबसे पहले, निवेशकों को चाहिए कि वे सोने और चांदी के बीच मौजूदा अनुपात का पूर्ण विश्लेषण करें। यह अनुपात बताता है कि एक निवेशक को सोने की अपेक्षा चांदी में कितना निवेश करना चाहिए।
वर्तमान में, जब सोने और चांदी के बीच का अनुपात उच्च होता है, तो इसका अर्थ है कि चांदी अपेक्षाकृत सस्ती है। ऐसे में, चांदी में निवेश करना फायदेमंद हो सकता है, जबकि सोने की कीमतों में स्थिरता का अनुमान लगाया जा सकता है। इसके विपरीत, जब अनुपात घटता है, तो यह संकेत करता है कि सोने की कीमतें बढ़ रही हैं, और ऐसे समय में निवेशक को सोने में अधिक रुचि दिखानी चाहिए। इसके लिए, एक तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, जिसमें तकनीकी और मौलिक विश्लेषण का संयोग हो।
द्वितीयक रूप से, बाजार के रुझानों और समाचारों का पालन करना भी सलाहकार साबित हो सकता है। भारत में वैश्विक बाजार की स्थितियों, मोनिटरी पॉलिसी, और सरकार के निर्णयों के साथ-साथ सोने और चांदी की खपत के आंकड़े, सभी निवेशकों को अपने निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं। टाइमिंग महत्वपूर्ण होती है, और न्यूनतम रिस्क के साथ अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए ये तथ्यों के साथ सही समय पर कदम उठाना आवश्यक है। अंततः, सही अनुसंधान और सूचित निर्णय लेने से 2025 में अधिकतम रिटर्न संभव हो सकेगा।
भारत में निवेशकों के लिए Gold-to-Silver Ratio का महत्व
सोने-चांदी का अनुपात भारतीय निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ बिंदु है, जो उन्हें इनकी मूल्य प्रवृत्तियों के बारे में सूचित करता है। यह अनुपात, जो कि सोने की कीमत को चांदी की कीमत से विभाजित करके प्राप्त किया जाता है, निवेश निर्णय लेने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत में सोने और चांदी दोनों का वित्तीय और सांस्कृतिक महत्व है, और इसलिए इन धातुओं के बीच के अनुपात को समझना आवश्यक है।
भारतीय सांस्कृतिक परिपेक्ष्य में सोना अक्सर समृद्धि और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, जबकि चांदी को पारंपरिक रूप से शुभ माना जाता है। इसलिए, जब भारतीय निवेशक सोने-चांदी के अनुपात को देखते हैं, तो वे न केवल आर्थिक डेटा पर ध्यान केंद्रित करते हैं, बल्कि इसके सांस्कृतिक प्रभावों को भी ध्यान में रखते हैं। सही अनुपात का ज्ञान उन्हें यह पहचानने में मदद कर सकता है कि कब चांदी में निवेश करना फायदेमंद हो सकता है, खासकर जब सोने का मूल्य अपेक्षाकृत अधिक हो।
इसके अतिरिक्त, सोने-चांदी का अनुपात वित्तीय पोर्टफोलियो में विविधता लाने का एक साधन भी प्रदान करता है। यदि अनुपात चांदी के पक्ष में बढ़ता है, तो निवेशक सोने से चांदी की ओर रुख कर सकते हैं, जिससे उन्हें विभिन्न बाजार स्थितियों में संभावित लाभ मिल सकता है। इस तरह, अनुपात न केवल निवेशकों के लिए अवसरों और जोखिमों की पहचान में मदद करता है, बल्कि यह उनके समग्र निवेश रणनीति को भी मजबूत करता है।
इस दृष्टिकोण से देखा जाए, तो सोने-चांदी का अनुपात भारतीय निवेशकों के लिए एक अनदेखा संकेत है, जो उनकी सांस्कृतिक समझ और आर्थिक चुनौतियों का सामना करने की क्षमता को बढ़ा सकता है। इस लिए, इसे नजरअंदाज करना एक बड़ा मौका खोने के बराबर हो सकता है।
Gold-to-Silver Ratio को आसान भाषा में समझें
सोने-चांदी का अनुपात एक महत्वपूर्ण वित्तीय संकेतक है, जिसे विशेष रूप से निवेशक अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिए उपयोग कर सकते हैं। यह अनुपात सोने की कीमत को चांदी की कीमत से विभाजित करके निर्धारित किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि सोने की कीमत 10,575 रुपये प्रति ग्राम है और चांदी की कीमत 130 रुपये प्रति ग्राम है (या 1,30,000 रुपये प्रति किलो), तो सोने-चांदी का अनुपात 81 होगा। यह संख्या निवेशकों को यह समझने में मदद करती है कि सोने और चांदी के बीच मूल्य का अनुपात क्या है और किस धातु में निवेश करना अधिक फायदेमंद हो सकता है।
कई लोग सोचते हैं कि जब सोने का अनुपात उच्च होता है, तो यह चांदी में निवेश करने का एक अवसर हो सकता है, क्योंकि यह संकेत देता है कि चांदी अपेक्षाकृत सस्ती हो गई है। इसी प्रकार, जब अनुपात कम होता है, तो यह सुझाव दे सकता है कि चांदी महंगी हो गई है और सोने में निवेश करना अधिक लाभकारी हो सकता है। इसके अतिरिक्त, यह अनुपात बाजार के चलन को पहचानने में भी सहायक होता है, जिससे निवेशक बाजार की स्थिति का बेहतर विश्लेषण कर सकते हैं।
विभिन्न निवेशक इस अनुपात को अपने विश्लेषण के उपकरण के रूप में देखते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई निवेशक देखता है कि सोने-चांदी का अनुपात 70 के ऊपर है, तो वह यह सोच सकता है कि चांदी में निवेश का यह सही समय है। दूसरी तरफ, अगर अनुपात 40 के आसपास है, तो वह सोने में निवेश पर विचार कर सकता है। इस प्रकार, सोने-चांदी का अनुपात निवेशकों के लिए एक उपयोगी संकेत है, जो उन्हें सही निर्णय लेने में मार्गदर्शन करता है।

समापन विचार: Arbitrage और निवेश के अगले कदम
आर्बिट्राज का दृष्टिकोण और सोने-चांदी का अनुपात एक महत्वपूर्ण विषय है जो भारतीय निवेशकों के लिए नई संभावनाओं को प्रस्तुत करता है। इस लेख में हमने यह समझा है कि सोने और चांदी का अनुपात कैसे निवेशकों को बाजार में मूल्यवान संकेत प्रदान कर सकता है। इस अनुपात का विश्लेषण करके, निवेशक सोने और चांदी की कीमतों में संभावित परिवर्तन की पूर्वानुमान कर सकते हैं।
इसके अलावा, हमने देखा कि सोने और चांदी का अनुपात विभिन्न आर्थिक स्थितियों के साथ कैसे बदलता है। कई बार, जब सोने की कीमतें बढ़ती हैं, तो चांदी की कीमतों में अपेक्षाकृत स्थिरता दिख सकती है। यहीं से निवेशकों के लिए रणनीतिक निर्णय लेना महत्वपूर्ण होता है। इस जानकारी का उपयोग करके, निवेशक अपने पोर्टफोलियो में संतुलन बना सकते हैं और जोखिम को कम कर सकते हैं।
निवेश करने के लिए प्राथमिक कदमों में से एक है अनुसंधान करना और बाजार की प्रवृत्तियों पर ध्यान देना। निवेशकों को चाहिए कि वे सोने और चांदी के बाजार की गतिशीलता को समझें और विभिन्न पारंपरिक और आधुनिक नीतियों का मूल्यांकन करें। इसके अलावा, पिघलता हुआ सोना या भंडारित चांदी को उनका सही मूल्यांकन करना बेहद फायदेमंद सिद्ध हो सकता है।
अंत में, यह समीकरण न केवल यथार्थवादी है, बल्कि यह बेहतर निवेश निर्णय लेने और लाभ अर्जित करने का एक महत्वपूर्ण साधन भी है। निवेशकों को आवश्यक रूप से अपने निवेश विधियों में इस ज्ञान को समाहित करने का प्रयास करना चाहिए। उचित अनुसंधान और निवेश की समझ के साथ, वे सोने-चांदी के अनुपात का अधिकतम लाभ उठा सकते हैं।
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Disclaimer : इस ब्लॉग में दी गई जानकारी केवल शैक्षिक उद्देश्य के लिए है। यह वित्तीय या निवेश सलाह नहीं है।
निवेश का निर्णय लेने से पहले किसी पंजीकृत वित्तीय सलाहकार से परामर्श करें।
लेख में दिए गए आंकड़े अगस्त 2025 तक के सार्वजनिक डेटा पर आधारित हैं। बाजार परिस्थितियों में बदलाव के लिए लेखक एवं वेबसाइट जिम्मेदार नहीं होंगे।

